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UN Logo International Day of the World's Indigenous Peoples 9 August

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20 हज़ार आदिवासियों की कुर्बानी से शुरू हुई थी स्वतंत्रता की कहानी, जब 1855 में जगे थे हिन्दुस्तानी
भारतीय स्वतंत्रता की जब भी बात की जाती है, तो सैनिक विद्रोह का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है. वर्ष 1857 की क्रांति को हिन्दुस्तान की पहली क्रान्ति कहा गया है. सच की बात करें तो ये सच नहीं है. इससे पहले भी एक लड़ाई हुई थी, जो सिर्फ़ अंग्रेजों के खिलाफ़ ही नहीं, वरन समाज में शोषण करने वाले सभी लोगों के ख़िलाफ़ थी. सामाजिक जनचेतना के लिहाज से यह युद्ध काफ़ी महत्वपूर्ण था. इतिहास में इसे 'संथाल हूल' या 'संथाल विद्रोह' के नाम से जाना जाता है. इसका नेतृत्व सिद्धू और कान्हू नाम के दो आदिवासी भाइयों ने 30 जून 1855 से प्रारंभ किया था. इस घटना की याद में प्रतिवर्ष 30 जून को 'हूल क्रांति दिवस' मनाया जाता है. आइए, आपको इसकी विशेषता के बारे में बताते हैं.
पूरा आर्टिकल पढ़ने से पहले इन मुख्य बिंदुओं पर ज़रूर ग़ौर करें.
•संथाल परगना में 'संथाल हूल' और 'संथाल विद्रोह' के कारण अंग्रेजों को भारी क्षति उठानी पड़ी थी.
•झारखंड के इतिहास के पन्नों में जल, जंगल, जमीन, इतिहास-अस्तित्व बचाने के संघर्ष के लिए जून महीना 'शहीदों का महीना' माना जाता है.
•अंग्रेजों का कोई भी सिपाही ऐसा नहीं था, जो इस बलिदान को लेकर शर्मिदा न हुआ हो. इस युद्ध में करीब 20 हजार वनवासियों ने अपनी जान दी थी.
क्रान्ति की मुख्य वजह
जल, जंगल और ज़मीन पर आदिवासियों का हक़ सदियों से चला आ रहा है. अंग्रेज़ों ने इस पर मालगुजारी भत्ता लगा दिया, इसके विरोध में आदिवासियों ने सिद्धु-कान्हू के नेतृत्व में आंदोलन शुरू कर दिया. इसे दबाने के लिए अंग्रेज़ों ने मार्शल लॉ लगा दिया. नतीजा ये हुआ कि 20 हजार से ज़्यादा आदिवासियों को जान से हाथ धोना पड़ा.
अंग्रेज़ों के खिलाफ़ रोष था
आदिवासी अंग्रेजों से इतना चिढ़ गए कि वे उन्हें हर हाल में अपने क्षेत्र से भगाना चाहते थे. इसके लिए उन्होंने 'करो या मरो, 'अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो' के नारे दिए गए थे.
चार सगे भाइयों ने पूरी हुकूमत हिला दी थी
इस पूरे आंदोलन का नेतृत्व चार सगे भाई सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव कर रहे थे. उनके साथ पूरा आदिवासी समाज था.
तोप का मुकाबला तीर से किया जा रहा था
इस लड़ाई में हार आदिवासियों की तय थी. अंग्रेजों के पास अत्याधुनिक हथियार थे, जबकि आदिवासियों के पास धनुष और तीर के अलावा कुछ नहीं था. आदिवासियों के पास हिम्मत तो थी, लेकिन धूर्त गोरों को हराना मुश्किल था.
इतिहासकारों की नज़र से 'संथाल विद्रोह'
इतिहासकारों ने संथाल हूल को 'मुक्ति आंदोलन' का दर्जा दिया है. हूल को कई अर्थों में समाजवाद के लिए पहली लड़ाई माना गया है. आइए आपको कुछ महत्वपूर्ण इतिहासकारों से मिलवाते हैं.
रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय भाषा के प्रोफेसर उमेश चंद्र तिवारी कहते हैं, 'देश की आजादी का संभवत: पहला संगठित जन अभियान हासिल करने के लिए तमाम शोषित-वंचितों ने मुखर स्वर जान की कीमत देकर बुलंद किया.'
डॉ़ भुवनेश्वर अनुज की पुस्तक 'झारखंड के शहीद' के मुताबिक, इस क्षेत्र में अंग्रेजों ने राजस्व के लिए संथाल, पहाड़ियों तथा अन्य निवासियों पर मालगुजारी लगा दी. इसके बाद न केवल यहां के लोगों का शोषण होने लगा था, बल्कि उन्हें मालगुजारी भी देनी पड़ रही थी. इस कारण यहां के लोगों में विद्रोह पनप रहा था.
झारखंड के विनोबा भावे विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफेसर विमलेश्वर झा कहते हैं कि संथाल हूल के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जर्मनी के समकालीन चिंतक कार्ल मार्क्स ने अपनी पुस्तक 'नोट्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री' में जून 1855 की संथाल क्रांति को जनक्रांति बताया है.
झारखंड के इतिहास के जानकार बी. पीक. केशरी कहते हैं कि सिद्धू, कान्हू, चांद और भैरव चारों भाइयों ने लगातार लोगों के असंतोष को एक आंदोलन का रूप बनाया.
'जुमीदार, महाजोन, पुलिस आर राजरेन अमलो को गुजुकमा.' (जमींदार, पुलिस, राज के अमले और सूदखोरों का नाश हो). इस क्रांति के संदेश के कारण संथाल में अंग्रेजों का शासन लगभग समाप्त हो गया था. हिन्दुस्तान के इतिहास में यह आंदोलन काफ़ी महत्वपूर्ण था, है और रहेगा.

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दाना मांझी की खबर पढ़कर बहरीन के प्रधानमंत्री हुए दुःखी, किया मदद का ऐलान

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गल्फ डिजिटल न्यूज़ के मुताबिक ओडिसा के दाना मांझी के बारे में बहरीन के प्रधानमंत्री प्रिंस खलीफा बिन सलमान खलीफा ने पढ़ा तो वह दुखी हो गए और दाना मांझी की सहायता करने का निर्णय लिया।

दाना मांझी, ओडिसा का रहने वाला एक भारतीय, सुविधा के अभाव में तथा अस्पताल की एम्बुलेंस द्वारा मना कर देने के कारण अपनी मृत पत्नी की लाश को 12 किलोमीटर उठा कर चलने को विवश हो गया था।
बहरीन के प्रधानमंत्री कार्यालय ने भारत स्थित बहरीन के दूतावास से इस मामले में संपर्क किया और दाना मांझी की आर्थिक मदद करने का निर्णय लिया। यह रकम कब दी जाएगी और कितनी दी जाएगी इस पर से पर्दा उठना बाकी है।

दाना मांझी की 42 वर्षीय पत्नी को टीबी था और उनको इलाज के लिए भवानीपटना के जिला अस्पताल लाया गया था जहां उनकी मृत्यु हो गयी थी। मांझी ने बताया था कि उनका घर 60 किलोमीटर दूर है और किराए के लिए पैसे भी नहीं है। अस्पताल प्रशासन ने मृत शरीर को वापस लेजाने से मना किया तो मांझी अपनी बीवी की लाश को कपडे से लपेट कर खुद ही कंधे पर लेकर चल पड़े। 12 किलोंमीटर लेजाने के बाद लोगो के दबाव में एम्बुलेंस को लेजाना पड़ा।

फरवरी में सरकार ने घोषणा की थी कि शव को अस्पताल से घर लेजाने के लिए फ्री मोर्चरी वैन सेवा दी जाएगी।  दाना मांझी की खबर के बाद स्कीम को फ़ौरन लागू कर दिया गया।

हिंदी उस्ताद बहरीन के प्रधान मंत्री और ओडिसा के मुख्यमंत्री का धन्यवाद करता है

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प्रकृति से है प्यार तो बिताइए कुछ दिन ओमान के इस "कछुआ संरक्षण" में

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SARKAAR_NAHI_DE_RAHI_DHYAN

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MRP-UMASHANKAR_UPLOADER

वाह रे फेसबुक कन्हा से कन्हा खबर पहुचा दिया पर भारत के उसी प्रदेश के मुख्य मंत्री तक बात नही पहुची

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DAANA_MANJHI-AADIVASHI-SHOSHAN

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Mrp-Umashankar-9669614847
---ANIL_SINGH_GOND
यही तो अच्छे दिनों की शुरूआत है...........
ममोदी जी और पटनायक जी कुछ तो करिये......
ये कमबख्त आदिवासी तो आप लोगों को लगातार दुनिया के सामने नंगा किये जा रहे हैं वैचारिक,सांस्कृतिक और माननीय दृष्टिकोण से.....भागवत जी ये मनुवादी (तथाकथित भारतीय संस्कृति) का घोर अपमान हैं.......
मैं थूकता हूँ
हां मैं थूकता हूँ
ऐसे विकास पर
ऐसी प्रतिष्ठा पर
ऐसे अखंडभारत पर
ऐसी समृद्धि पर
ऐसी डिजिटलता पर
ऐसी चमनता पर
ऐसी महा मानवता पर
ऐसे नेताओं पर
ऐसे प्रेणेताओं पर
हाँ मैं थूकता हूँ
सरकारी ओहदों पर बैठे चेलों पर
लाल बत्ती में मिमियाते बेलों पर
खून पीने वाले उस विधानसभा के विधायक पर
उस जिले के जिला कलेक्टर पर
उस अस्पताल के प्रबन्धन पर
उसे देखकर हंसने वाले जनता जनार्दन पर

हां मैं थूकता हूँ
एक पचास साठ किलो की लाश
मरने के बाद भले कम हो जाती हो
उसके साथ बिताई चालीस पचास साल के पल
भारी थे
और उससे भारी पचास साठ किलोमीटर का
उबड़ खाबड़ रास्ता
रास्ता जो सरकारी नियमों की पैरवी कर
जोर जोर से हंस रहा था,
इतना भारी लेकर भी वो चला चलता गया
न नुमाइंदों को लाज आयी
न मालिक-इ-नुमाइंदको
यूँ तो मानवता की बढ़ी बढ़ी किताबें
धर्मों में पढाई जाती है
सिखाया जाता है धर्म धर्म धर्म
मर गया था तब उसको देखकर आगे बढ़ने वालों का धर्म
आज जिन्दा हो गया हेल्लो हाय गुड मॉर्निंग के साथ
और मर गया उसका धर्म सदा सदा सदा के लिए
सदा के लिए |


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MATA_PITA_LA_SEWA_CHHODH_TAIN-PANI_CHADHATHAS_PATTHAR-MA

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PREM_SAY_MARAVI_SONGS
DJ-SHANKAR-BABU_8966950052


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BADADEV_AARATI_NEW_TRACK

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750-TRACK,_8MB
DJ-SHANKAR-BABU_8435642991


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JAI_SEWA

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BADADEV_CHALISHA_23MB_FUL_SONG
SHANKAR-BABU_8966950052


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PRAYER-SONG

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AARATI_JAY_BADADEV
SHANKAR-BABU_9669614847



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SUMARNI_SONG-WITH-BADADEV

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DEV_SUMARNI_HO_RAHI_O_BADADEV-DJ_SHANKAR_BABU
SHANKAR-BABU_8966950052


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GONDI-MRP-MUSIC

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